India - China Relations
India - China Relations का इतिहास
भारत एवं चीन के संबंध ना सिर्फ पौराणिक है किन्तु सांस्कृतिक एवं धार्मिक भी है। अगर हम इतिहास में झांके तो पाएंगे कि बहुत पुराना और गहरा संबंध है भारत - चीन का।
भारत और चीन के राजनैतिक रिश्तों की शुरुआत होती है 1 अप्रैल 1950 में।
यह उस समय की बात है जब माओ जदोंग के नेतृत्व में 1949 में दूसरी चीनी क्रांति (पूंजीवाद Vs मार्क्सवादी - माओवाद) के बाद चीन में माओवादी (माओ का मार्क्सवाद) सरकार बनी और देश दो भागों में बट गया!! उसी समय भारत में जवाहार लाल नेहरू की नेतृत्व वाली, सोशलिस्ट विचारधारा की सरकार बनी थी, जो कि पूंजीवाद की तुलना में कम्युनिस्ट विचारधारा से कुछ मेल खाता था।
दुनिया की दो तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था ने अपने मजबूत व्यापारिक संबंधों की नींव रक्खी, जब भारत अपने प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में उन बहुत थोड़े देशों में था, जिसने ताइवान से अपने संबंध तोड़ कर People's Republic of China (China) को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में स्वीकार किया था, और दिया था नारा - हिंदी - चीनी, भाई - भाई का।
India-China Relations |
तिब्बत का India - China Relations पर असर-
1950 में जब चीन में तिब्बत पर कब्जा किया था, तब वो भारत के लिए एक चेतावनी थी और चीन की विस्तारवादी नीति का एक परिचय भी! किन्तु इस चेतावनी पर किसी का ध्यान नहीं गया। चीन के आक्रामक रवाईए के बावजूद उसे भारत के लिए खतरा नहीं समझा गया था।
भारत केवल और केवल पाकिस्तान को ही अपना शत्रु और भारत की अखंडता पर खतरा मानता था, और उससे निपटने के लिए खुद को तैयार रखता था।
1962 का युद्ध और India - China Relations का बदलता रुख-
उस वक्त हमारा देश कई सारी परेशानियों से जूझ रहा था, जैसे कि देश की गरीबी, भूख, सामाजिक पिछड़ापन, पाकिस्तान से खतरा और तिब्बत का समर्थन करने के लिए चीन का बढ़ता अविश्वास। अतः चीन से अपने संबंध मधुर बनाए रखने के लिए, भारत में तिब्बत से अपना समर्थन वापस ले लिया और भारत चीन बॉर्डर पर भी इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलप करने से अपने पैर पीछे तक कर लिए। भारत ने चीन पर विश्वास किया, और इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया कि इन सब के बावजूद भी चीन खतरा हो सकता है, जो की एक बहुत बड़ी भूल साबित हुई।
और फिर होता है 1962 के भारत चीन युद्ध।
यह काल 1958-1962 वह काल था, जब चीन में महा अकाल पड़ा था, माओ सरकार बुरी तरह हार चुकी थी, अंदाजाइस है इस अकाल में
3 करोड़ 60 लाख से भी अधिक लोगों की भूख से मृत्यु हो गई थी। माओ सरकार को सत्ता खोने का डर था। और जैसा की इतिहास हमे हिटलर एवं स्टेलिन जैसे तानाशाहों कि नीतियों से सिखाती है, अगर सत्ता खोने का डर है तो युद्ध छेड़ दो - क्यूंकि देशवासियों में सरकार के प्रति गुस्सा कितना भी क्यूं ना हो, देश भूख से मर क्यूं ना रहा हो, अर्थव्यवस्था चकनाचूर क्यूं ना हो चुकी हो, देश और देशभक्ति सबसे प्राथमिक और सबसे प्रबल भावना बन जाती है। उस वक़्त जब देश किसी अन्य देश के साथ युद्ध में हो सारा विरोध थम जाता है, और युद्ध जीत जाने की स्तिथि में तो विरोध इस कदर निम्न हो जाता है जैसे कोई विरोध हो ही ना। और इतिहास ने एक बार अपने आप को फिर दोहराया। अपनी सत्ता बचाने के लिए, और अपनी विस्तारवादी नीतियों कि वजह से,
चीन ने भारत के विरुद्ध 1962 का युद्ध छेड़ दिया और जीत भी गया। भारत का बहुत बड़ा हिस्सा चाहे वो लद्दाख में हो या अरुणाचल प्रदेश अपने कब्जे में ले लिया। इसके साथ ही हो गया समाप्त माओ का विरोध और आज स्तिथि यह है कि पूजे जाते हैं माओ और अमर सी है उनकी नीतियां । (3,60,000,000 लोगों की हत्या के बावजूद)
युद्ध के बाद की स्थिति-
जहां तक बात लद्दाख की है तो वो एरिया जो चीन ने 1962 की युद्ध में जीता था उसे आज अक्साई चीन के नाम से जानते है। भारत आज भी उस एरिया को अपने मानचित्र में दिखता है हालाँकि वो एरिया आज के समय में चीन का कब्ज़ा है। चुकि ये विवादित धेत्र हो गया इसलिए दोनों देशों ने आपसी सलाह मशविरह से 1996 में एक संधि की जिसके तहत इन दोनों देशो की सीमा के बीच जहा जहा विवाद है उस एरिया को लाइन ऑफ़ एक्चुअल कण्ट्रोल यानि LAC नाम दिया। ये किसी भी प्रकार का अंतराष्ट्रीय बॉर्डर नहीं है इन दोनों देशो के बीच। गालवन घाटी इसी LAC में पडती है।
समस्या तब बनी जब इन दोनों देशो के बीच LAC के नक़्शे को आपस में एक दूसरे को नहीं दिया गया और नेचुरल जगहों जैसे नदी, पहाड़ आदि को LAC मान लिया गया। इसी से confusion पैदा हुआ और चीन ने इसका भरपूर फायदा उठाया और भारतीय सीमा में लगातार प्रवेश करके भारतीय जमीन को कब्ज़ा करने लगा।
हम यह सवाल उठा सकते हैं की फिर भारत रोकता क्यों नहीं है ?
वास्तव में ये सीमा भारत पाकिस्तान जैसे समतल भूमि में नहीं है यहाँ बड़े बड़े पहाढ़ है और इनके बीच फेंसिंग नहीं की जा सकती. इसलिए ये पता लगा पाना की वास्तविक सीमा कहा पर है बहुत मुश्किल है। जिस कारन सीमा बॉर्डर फाॅर्स उस एरिया में गस्त नहीं लगा पाता। चीन लोकल लोगो जैसे भेड़, बकरी चराने वालो के साथ मिलकर उस एरिया को समझता है और धीरे धीरे भारतीय एरिया में प्रवेश करने लगता है और वहां चाय, बिस्कुट, खाना खाता है फोटो सेशन करता है और वापस चला जाता है, ऐसा इसलिए करता है क्योकि आने वाले समय में वो दिखा सके की में पिछले 10 सालों से यहाँ आता रहा हु और ये एरिया मेरा है। यही तरीका वो लद्दाख में और अरुणाचल प्रदेश में करता है। और इसी तरह वो अब तक भारत के बहुत बड़े हिस्से को अपना हिस्सा बना चूका है, भारत इसलिए विरोध नहीं कर पता क्योकि चीन बेहद शक्तिशाली देश है, खैर ये तो है भारत और चीन के सीमा विवाद जो चलता आ रहा था, फिर ये अचानक कोरोना काल में क्यों इतना बढ़ गया।
कोरोना संकट और India - China Relations की नयी परिभाषा-
इस वक़्त जब सारा विश्व Corona संकट से लड़ रहा है, चीन चाहे वो South China Sea में हो या भारत के साथ, अपने पड़ोसियों से लड़ रहा है। कई कारण हो सकते हैं अभी चीन के इस Territorial Aggression के।
आज विश्व जिस दौर से गुजर रहा है, यह Corona काल, इसने चीन पर, चीन की आंतरिक एवम् अंतरराष्ट्रीय राजनीति पर भी बहुत बुरा प्रभाव डाला है। आज लगभग सारा विश्व चीन के विरुद्ध खड़ा हो गया है, अमेरिका और यूरोपीयन संघ ने तो चीन को सीधे तौर पर आज की Corona स्तिथि के लिए जिम्मेदार ठहराया है। भारत का भी रवैया इसी दिशा में है। इन सबके साथ ही दूध में केसर जैसा काम कर रही है भारत अमेरिका की बढ़ती नजदीकियां। अबतक भारत की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सदा ही अपनी स्वतंत्रत पहचान है, भारत ने कभी किसी बड़े ताकतवर देश का साथी बन किसी दूसरे का विरोधी नहीं बना है, किन्तु आज की अंतरराष्ट्रीय नीतियों को देखें तो शायद भारत अपनी यह स्वतंत्र पहचान खोने के कगार पर हो सकता है। आज अगर भारत अमेरिका का साथ स्वीकारता है, और चीन से दुश्मनी करता है, तो हमें भविष्य में बद से बद्तर परिणाम देखने को मिल सकते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि इस प्रकार अलग थलग पड़ जाने की वजह से चीन बिल्कुल किसी घायल शेर, माफ़ी चाहूंगी ड्रैगन की तरह आग उगल रहा है, अपना विरोध जाता रहा है, विश्व को, खास कर भारत को यह चेतावनी दे रहा है कि अगर वह अलग पड़ा तो वह पाकिस्तान की तरह चुप नहीं बैठेगा, वो कमज़ोर नहीं है, वो भारत का एक अत्यंत ही सक्षम एवम् मजबूत पड़ोसी है, और भारत को उससे दुश्मनी मोल नहीं लेनी चाहिए।
मेरी राय यह है कि भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखनी चाहिए।
जिस प्रकार USA - USSR में Cold War के वक़्त भारत ने किसी एक पक्ष का समर्थन नहीं किया था, उसी प्रकार अगर USA और China में Cold War छिड़ता है तब भी भारत को अपनी स्वतंत्र पहचान बनाए रखनी चाहिए, किसी एक पक्ष में जाने से दुर्गम परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है जिसके लिए हम तैयार नहीं हैं, और इसकी आवश्यकता भी नहीं है।
चीन के इस आक्रामक रवाइए का एक और कारण है : जैसा कि हम सब इस बात से परिचित हैं कि चीन में डेमोक्रेसी नहीं, बल्कि ऑटॉक्रेसी है। वहां नागरिकों को अभिव्यक्ति की आज़ादी नहीं, प्रेस को आज़ादी नहीं, लोग घूंट घूंट कर जीते हैं, किन्तु चीन इन सब विरोधों को अपनी अच्छी अर्थव्यवस्था के कारण ही काबू में रख पाता है। जबकि विशेषज्ञों का मानना है कि पोस्ट कोविड वर्ल्ड में चीन की प्रभुता होगी, हम यह कदापि नहीं भूल सकते की अभी का दौर चीनी सरकार के लिए भी बहुत संवेदाशील है, चीन पोस्ट Covid World में विश्व गुरु तभी बन पाएगा जब अभी के अपने आंतरिक राजनीति को काबू में रख पाएगा, इसके लिए अपने इतिहास से सीखते हुए चीन देशवासियों ने देशभक्ति की भावना जगा रहा है, अपने आप को Victim साबित कर, चीन देशवासियों का ध्यान भटकाने कि कोशिश कर रहा है, चाहे फिर वह दक्षिण चीन सागर हो या फिर गालवन घाटी।
क्या हुआ है गालवान घाटी में जिसने India - China Relations को फिर से परिभाषित करने पर मजबूर कर दिया?
पिछले साल भारत के BRO - बॉर्डर रोड आर्गेनाईजेशन ने भारतीय सेना के लिए 260 km लम्बी एक सड़क बनाई जो दौलत बाग़ ओल्डी से LAC होते हुए लेह तक जाती है। ये सड़क LAC के पास जहा छूती है वो एरिया है गालवन घाटी। चीन इसका विरोध करता रहा है और एक प्लान के तहत वो भारतीय सीमा में LAC के इस तरफ लगभग श्लोक रिवर तक पहुंच गया है (ऐसा विशेषज्ञों का मानना है) जो भारत के लिए सही नहीं है. भारत चाहता है की चीन वापस अपने LAC तक चला जाये।
जब पडोसी कमजोर हो, पाकिस्तान हो तो हम चिल्ला चिल्ला कर सर्जिकल स्ट्राइक कर सकते है, हम कह सकते है कि हम घर में घुस कर मरेंगे परन्तु जब पडोसी बेहद मजबूत हो, चीन हो तो हम यह कहने से भी नहीं चूक रहें की चीन तो कभी हमारे इलाक़े में घुसा ही नहीं।
तो हम समस्या का समाधान आपसी बातचीत से ही सुलझा सकते है।
लोगों को चीनी सामान बहिष्कार करने के लिए कहा जा रहा है वही भारत किसी तरह बातचीत के जरिये चीन को वापस LAC तक भेजना चाह रही है. बाकि तो हमारी सरकार ही जानती है की सच्चाई क्या है ???
आप लोग भी इस स्थिति पर विचार-विमर्श करें?
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